दुष्प्रेरण ( Abetment )

दुष्प्रेरण (Abetment) (धारा 107) -

 साधारण भाषा में दुष्प्रेरण का अर्थ है किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए, या यदि वह व्यक्ति कोई कार्य कर रहा है, तो उसे वह कार्य नहीं करने के लिए उकसाना या प्रेरित करना |

 

जब कोई अपराध कारित करने में अनेक व्यक्ति हिस्सा लेते हैं तो उसे कारित करने में उनमें से प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग ढंग से और अलग-अलग तरीके से मदद करता है |  एक व्यक्ति के प्रोत्साहन पर दूसरा व्यक्ति अपराध कारित करता है | जबकि कुछ अन्य व्यक्ति अपराध कारित होते समय केवल सहायता देने के लिए उपस्थित रहते हैं तथा कुछ व्यक्ति मुख्य अपराधी (जिसने कि अपराध कारित किया है) को हथियार जुटाने में सहायता कर सकते हैं |

 

 अब उन सभी व्यक्तियों की अपराधिकता की मात्रा  के विनिश्चयन  के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग (मदद ) की क्या मात्रा और प्रकृति है, इसका निर्धारण किया जाए |

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Definition by Indian Penal Code,1860,Section 107 -

भारतीय दंड संहिता, 1807 की धारा 107 के अनुसार,

                                                                          वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण (Abetment) करता है, जो- 

प्रथम- उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता (Incites) है, अथवा

द्वितीय- उस बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र (Conspiracy) में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण(Following a conspiracy) में, कोई कार्य या अवैध चूक होती है, अथवा 

तृतीय- उस बात के किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप (Indirectly) द्वारा साशय (जानबूझ) कर सहायता करता है.| 

अतः  दुष्प्रेरण तभी एक अपराध होता है जबकि दुष्प्रेरित कार्य स्वतः  एक अपराध हो तथा भारतीय दंड संहिता 1807 के अंतर्गत या तत्समय में प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अंतर्गत दंडनीय हो | 

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Explain With Examples -

दृष्टांत (1)  –   क, एक लोक  ऑफिसर, न्यायालय के वारंट द्वारा य को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है | ख  इस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए की ग, य नहीं है, जानबूझकर साशय क से ग को पकड़वाता  है |   यहां ख  क, एक लोक  ऑफिसर को ग को पकड़ाने का दुष्प्रेरण करता है | 

दृष्टांत (2)  –  अ   ब को प्रोत्साहित करता है कि  वह म की हत्या कर दे | स ,  मारो मारो कह कर ब को प्रोत्साहित करता है और द उसे लाठी पकड़ाता 

 है |  ब  इस प्रोत्साहन के प्रभाव में आकर म की हत्या कारित  कर देता है | प  यह जानते हुए कि ब  ने म की हत्या की है उसे शरण देता है,  ताकि वह पकड़ा ना जा सके | 

                                                                          इस उदाहरण में  ब  वह व्यक्ति है, जो अपराध कारित करता है |  अतः ब मुख्य अपराधी है तथा अन्य सभी व्यक्ति दुष्प्रेरण के लिए अभियोजित  किए जाएंगे | 

Related case -

गांगुला मोहन रेड्डी बनाम  आंध्र प्रदेश, AIR 2010 के वाद  में यह अभिनिर्धारित किया गया कि  दुष्प्रेरण उकसाने की मानसिक अथवा कोई निश्चित कार्य करने में साशय  सहायता पहुंचाना है | 

                                        दुष्प्रेरण में अभियुक्त के द्वारा कुछ सकारात्मक कार्य किया जाना आवश्यक है |

दुष्प्रेरण के आवश्यक तत्व (Essencial Elememnts Of Abetment) -

 दुष्प्रेरण के तीन आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं – 

 

  •  एक दुष्प्रेरक होना चाहिए, जिसने कि  मुख्य अपराधी को दुष्प्रेरित  किया हो, किसी अपराध  को कार्य करने के लिए या अपराध कार्य होने के बाद साशय  उसकी सहायता की हो उसे बचाने में |
    •  
    • वह दुष्प्रेरण करें अर्थात मुख्य अपराधी को दुष्प्रेरित करें  कि वह कोई अपराध कार्य कर सकता है |

 

  • दुष्प्रेरण एक अपराध हो अर्थात दुष्प्रेरण तभी एक अपराध हो सकता है जबकि दुष्प्रेरित कार्य  स्वतः एक अपराध हो |  यहां तात्पर्य यह है कि  प्रथम दृष्टया अपराध का होना आवश्यक है | 

 

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दुष्प्रेरण के प्रकार (Types Of Abetment) -

 भारतीय दंड संहिता 1860 के अंतर्गत दुष्प्रेरण के प्रकार से तात्पर्य दुष्प्रेरण के किए जाने के तरीके से हैं, अर्थात किस प्रकार का कार्य किए जाने पर व्यक्ति दुष्प्रेरण का दोषी हो सकता है | निम्न तीन प्रकार से दुष्प्रेरण का अपराध किया जा सकता है  –

 

(1)  उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण (Abetment By instigation) 

                                                                                           उकसाना या भड़काने का अर्थ है किसी अन्य व्यक्ति को एक दोषपूर्ण  कार्य करने के लिए उत्तेजित करना |  एक व्यक्ति एक कार्य करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को सलाह, सुझाव, उकसाने या निर्देश द्वारा दुष्प्रेरित कर सकता है |  उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण गठित करने के लिए अपराध सृजन की दिशा में कुछ सक्रिय प्रक्रियाएं आवश्यक है | 

 

 उकसाने का अर्थ है सक्रिय रूप से सुझाव देना अर्थात प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्रेरित करना, चाहे यह स्पष्ट प्रार्थना के रूप में हो या संकेत से फुसलाना हो | 

 

 इस प्रकार यह स्पष्ट है उकसाना का अर्थ फुसलाना,  प्रार्थना करना, उत्तेजित करना, विनती करना या किसी कार्य के लिए उत्साहित करना है | 

 

 किसी भी प्रकार की भाषा का प्रयोग दुष्प्रेरण के लिए किया जा सकता है  –   मौखिक भाषा या सांकेतिक भाषा

                                                          

                                                                परंतु ऐसा सुझाव  या प्रार्थना या विनती सक्रिय रूप से कोई अपराध कार्य करने के लिए हो | 

उदाहरण (A)  –   अ  ब  से कहता है कि उसका आशय स  की हत्या करने का है |  ब उससे  कहता है कि  जैसी                                                                  तुम्हारी इच्छा हो करो | अ स को मार डालता है | 

इस उदाहरण में यह नहीं कहा जा सकता कि ब ने स  की हत्या के लिए अ को प्रोत्साहित किया है, क्योंकि प्रोत्साहन का अर्थ है किसी कार्य को कार्य करने के लिए सक्रिय सुझाव का समर्थन |  सलाह स्वतः  उकसाने के समतुल्य नहीं है |                 

रंगा नायकी बनाम स्टेट, ए आई आर 2005  के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित  किया गया कि विधि में उकसाने का कोई विनिर्दिष्ट तरीका अथवा प्रारूप नहीं है | यह आचरण के द्वारा भी हो सकता है |

 

उदाहरण (B)  –   अ  यह निश्चित रूप से  जानता था कि चोरी ब ने नहीं की है,  बल्कि स ने की है,  बावजूद इसके ब की ओर  ही इशारा किया |  यहां पर अ  जानबूझकर दुर्व्यपदेशन  या तात्विक  तथ्य को छिपाने द्वारा उकसाना गठित करता है, क्योंकि यहां पर अ ने प्राथमिक तथ्य को छिपाया है | 



उदाहरण (C)  –    अ  एक पत्र लिखकर ब को स की हत्या के लिए  उकसाता  है |  ब जैसे ही उस पत्र को पढ़ता  है, वैसे ही उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध पूर्ण हो जाता है | 

 

                           परंतु यदि पत्र कभी भी ब के पास पहुंचता ही नहीं, तो यह दुष्प्रेरित करने का प्रयत्न मात्र  होगा दुष्प्रेरण नहीं होगा | 

 

                           परंतु कभी-कभी दुष्प्रेरित करने का प्रयत्न मात्र भी दुष्प्रेरण (उकसाना) हो सकता है, जैसे  —

 अ   ब,  एक लोक सेवक को घूस देने का प्रयत्न करता है, परंतु वह उसे लेने से इनकार करता है |  अ दुष्प्रेरण का अपराध कारित  करता है | 



उदाहरण (D)  –     अ जानता था कि ब,  म की पत्नी से एक निर्दोष प्रयोजन हेतु मिलना चाहता था |  अ, म को उत्तेजित करने के उद्देश्य से उसे बताता है कि दोनों किसी अवैध  प्रयोजन हेतु मिलने वाले हैं | चूँकि  सुझाव  अ  ने म को इस  विचार से दिया कि वह  ब पर हमला करें, अतः वह उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण का दोषी  है |

(2)  षड्यंत्र के माध्यम से दुष्प्रेरण (Abetment By Conspiracy

                                                                                                षड्यंत्र के माध्यम से दुष्प्रेरण तब होता है जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी अवैध कार्य को करने अथवा किसी अवैध कार्य को अवैध साधनों से करने के लिए सहमत हो जाते हैं | षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण गठित होने के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक है  –

 

  •  दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच षड्यंत्र,
  •  एक कार्य या अवैध  लोप  उस षड्यंत्र के फलस्वरूप कारित हो तथा
  •  ऐसा कार्य या अवैध लोप  किसी निश्चित उद्देश्य को पूर्ण करने में कारित हुआ हो |

 

यहां यह स्पष्ट है कि षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण के अपराध के लिए किसी अवैध कार्य या अवैध  लोप को करने के लिए केवल दो या अधिक व्यक्तियों का एकत्रित होना मात्र पर्याप्त नहीं है, अपितु उस षड्यंत्र के अनुसरण में वह कृत्य या अवैध लोप वास्तव में कारित होना चाहिए |

 

षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण के अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरण उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर अपराध की योजना बनाएं |  यह पर्याप्त है कि वह उस षड्यंत्र में सम्मिलित हो जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है | 

 एक षड्यंत्र मात्र दुष्प्रेरक के समतुल्य नहीं है,  यदि षड्यंत्रकारियों की पहचान योजना पर विचार विमर्श के दौरान ही हो जाती है तो वे दुष्प्रेरकों  के रूप में दंडित नहीं होंगे |  भले ही उनका साधारण आशय अपराध कार्य करने का रहा हो | वे भारतीय दंड संहिता की धारा 120 – ख  के अंतर्गत षड्यंत्र के लिए दायित्व आधीन होंगे |

 –

 

 हरधन चक्रवर्ती बनाम भारत संघ, ए आई आर 1990   

                                                                            के मामले में याचिका दाता को षड्यंत्र के माध्यम से दुष्प्रेरण कार्य करने के लिए अभियोजित  किया गया |  मेजर त्रिलोक चंद के ऊपर 250 पहियों के ड्रमों  की चोरी का आरोप था और याचिकादाता समेत 9 लोगों को इस षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया गया था | परंतु 9 दुष्प्रेरकों में से 8 को दोष मुक्त कर दिया गया |  उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया चूँकि 9 दुष्प्रेरकों में से 8 दोषमुक्त कर दिए गए थे |  अतएव  मात्र एक याचिका दाता को ही षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण के अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि षड्यंत्र केवल एक व्यक्ति द्वारा संभव नहीं है |

 

 

सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन बनाम वीसी शुक्ला,  ए आई आर 1998 

                                                                                                      के वाद  में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह  निर्णय दिया गया कि जहां अभियोजन यह सिद्ध करने में असफल रहता है कि दो में से एक अभियुक्त किसी आपराधिक षड्यंत्र में भागीदार था ऐसी दशा में दूसरे अभियुक्त के विरुद्ध षड्यंत्र का आरोप सिद्ध नहीं माना जाएगा क्योंकि षड्यंत्र में कम से कम 2 व्यक्तियों का होना अनिवार्य है |

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(3) सहायता के माध्यम से दुष्प्रेरण(Abetment By Aiding)   –

                                                                                           भारतीय दंड संहिता  1860  की धारा 107 का तीसरा उपबंध  अपराध के लिए किए जाने में किसी कार्य या  अवैध लोप द्वारा साशय सहायता के कार्य को दुष्प्रेरण करना बतलाता है | धारा 107 का उपबंध तीन  उसी धारा के स्पष्टीकरण   दो के साथ पढ़ा  जाना चाहिए औऱ दोनों को साथ पढ़ा जाये  तो यह स्पष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति एक कार्य को करने में सहायता  पहुंचाने के कारण दंडित नहीं हो सकेगा यदि वह कार्य किया ही नहीं जाता |  सहायता पहुंचाने का मात्र आशय,  भले ही वह किसी ऐसे कार्य से संयुक्त क्यों न हो जो सहायता पंहुचा सकता है , दुष्प्रेरण गठित करने के लिए  तब तक पर्याप्त नहीं जबकि आशयित कृत्य यथार्थतः घटित  नहीं हो जाता तथा उसे सहायता प्राप्त नहीं हो जाती | 

 

 उदाहरण के लिए अ  मारो मारो कह कर ब को उत्तेजित करता है कि वह  स को मार डाले तथा द , ब के हाथों में लाठी पकड़ा देता है और इस प्रकार से या तो वह मार दिया जाता है या उसे गंभीर क्षति होती है |  यहां अ उकसाने  के माध्यम से दुष्प्रेरण का दोषी है तथा द सहायता पहुंचाने के माध्यम से दुष्प्रेरण का दोषी है, क्योंकि उसने  ब के  हाथों में लाठी पकड़ा कर कृत्य के संपादन में सहायता पहुचायी  तथा कार्य यथार्थतः  संपादित हुआ | 

 

 केवल सहायता पहुंचाना ही एक अपराध का दुष्प्रेरण नहीं होता जबकि सहायता पहुंचाने वाला व्यक्ति यह  नहीं जानता  कि कोई अपराध कारित किया जा रहा है या कारित किए जाने की संभावना है  |अपराध कारित किए जाने में सहायता पहुंचाने का आशय होना आवश्यक है | किन्तु यदि सहायता प्रदान करने वाले व्यक्ति को यह नहीं ज्ञात था कि जिस  कार्य को वह सहायता या समर्थन प्रदान  कर रहा है वह स्वतः  एक अपराध है तो यह नहीं कहा जा सकता  कि  वह साशय  उस कार्य को किए जाने  में सहायता करता है |

 

 उदाहरण स्वरूप अ , ब  तथा स मित्र है | अ तथा ब  में  इस तरह  मतभेद हो जाता है कि अ , ब को मार डालने का निश्चय  कर लेता है |  अ एक बहाने  से स के घर जाता है तथा स को प्रेरित करता है कि वह ब को बहाने से  अपने घर बुलाए |  स को इस बात का जरा सा भी ज्ञान नहीं था कि वह ब  को उसके आने पर मार डालेगा |  ब  आता है तथा अ उसकी हत्या कर देता है | क ने  हत्या कारित किया है |

 

 इस प्रकरण में कोई संदेह नहीं है कि स ने ब  को अपने घर बुलाने में मदद किया किंतु उसे इस तथ्य का ज्ञान नहीं था कि अ क्यों ब को बुलवा रहा है | जो कुछ भी  स ने किया साशय किया क्योंकि यह  निश्चयतः  स का आशय था कि ब उसके घर आए | किंतु यह स का आशय नहीं था कि कोई अपराध कारित  हो | अतः स 

हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं है |

 

किसी अपराध का  दुष्प्रेरण  स्वतः एक अपराध है | दुष्प्रेरण भारतीय दंड संहिता की धारा 40 के अंतर्गत भी एक अपराध है | अतः दुष्प्रेरण को भी कारित करने का प्रयास इस संहिता की धारा 511 ( प्रयास,Attempt ) के उपबंधों  के अधीन एक अपराध है |

 

 इसे निम्नलिखित  कुछ दृष्टांत से अच्छी तरह समझा जा सकता है  –

 

    1. G की हत्या करने के लिए M  को K  उकसाना है | M ऐसा करने से इंकार कर देता है | K हत्या करने के लिए M  के दुष्प्रेरण का दोषी है |
  •  G की हत्या के लिए M को K उकसाना है |  M ऐसी उकसाहट के अनुसरण में G को  विद्ध  करता है |  G का घाव अच्छा हो जाता है | K हत्या करने के लिए M को उकसाने का दोषी है |
  1. K दूषित आशय से एक शिशु या पागल को वह कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, जो अपराध होगा, यदि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो कोई अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ है और वही आशय रखता है जो कि K का है | यहां, चाहे वह कार्य किया जाए या न किया जाए K अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है |
  2. G को Y की हत्या करने को उकसाने के लिए M को K  उकसाता है | M तदनुकूल  Y की हत्या करने के लिए G को उकसाता है और K के उकसाने के परिणामस्वरूप G उस अपराध को करता है | M अपने अपराध के लिए हत्या के दंड से दंडनीय है, और K ने उस अपराध को करने के लिए M को उकसाया,  इसलिए K भी उसी दंड से दण्डनीय  है |

                                                                अर्थात दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है |

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दुष्प्रेरक का दायित्व (Liabilities Of Abettor) -

 1.दुष्प्रेरित  कार्य से  भिन्न  कार्य किए जाने पर दुष्प्रेरक का दायित्व  (धारा 111)  –

 जब किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है,  तब दुष्प्रेरक उस किए गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी  विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो | 

                                                                     परंतुक –      परंतु  यह तब  जबकि किया गया कार्य दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम हो  और उस उकसाहट के असर के अधीन या उस षड्यंत्र  के अनुसरण में किया गया हो 




उदाहरण   एक शिशु को य  के भोजन में विष  डालने के लिए  क  उकसाता है, और उस प्रयोजन से उसे विष परिदत्त  करता है |   वह शिशु  उस उकसाहट  के परिणामस्वरूप  भूल से म  के भोजन  में, जो य के भोजन के पास रखा हुआ है,  विष डाल देता है |  यहां, यदि वह शिशु क के उकसाने  के असर के अधीन उस कार्य को कर रहा था, और किया गया कार्य  उन परिस्थितियों में उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम है,  तो क  उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है,  मानो उसने उस शिशु को म  के भोजन में विष डालने के लिए उकसाया हो | 

  1. 2. दुष्प्रेरित अपराध से भिन्न अपराध के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व ( धारा 112) 

 यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को किसी कार्य के लिए  दुष्प्रेरित करता है और वह अपराधकर्ता  दुष्प्रेरित कार्य से भिन्न  कार्य कर देता है जिससे भिन्न अपराध का गठन होता है तो वह दुष्प्रेरक उस  भिन्न अपराध के लिए भी समान रूप से उत्तरदाई होगा



 उदाहरण   ख को  एक लोक सेवक  द्वारा किए गए करस्थम  का बलपूर्वक प्रतिरोध करने के लिए  क  उकसाता  है | ख परिणामस्वरूप उस करस्थम  का प्रतिरोध करता है | प्रतिरोध करने में ख  करस्थम का निष्पादन करने वाले ऑफिसर को स्वेच्छा  से घोर उपहति कारित करता है | ख ने  करस्थम का प्रतिरोध करने और स्वेच्छा से घोर उपहति कारित  करने के दो  अपराध किए हैं |  इसलिए हां ख दोनों अपराधों के लिए दंडनीय है, और यदि क यह संभाव्य जानता था कि उस करस्थम का प्रतिरोध करने में ख  स्वेच्छा से घोर उपहति  कारित करेगा, तो क  भी  उनमें से हर एक अपराध के लिए दंडनीय होगा | 

3.दुष्प्रेरण के आशय से भिन्न परिणाम के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व (धारा 113)  –

ऐसा कार्य जो दुष्प्रेरक की इच्छा अनुसार किया जाए परंतु उसका प्रभाव यदि दुष्प्रेरक के आशय  से अलग हो तो यदि दुष्प्रेरक उस प्रभाव के बारे में जानता था तो वह  उस भिन्न प्रभाव के लिए समान रूप से उत्तरदाई ठहराया जाएगा | 

 

 उदाहरण  Y  को घोर उपहति करने के लिए M  को K  उकसाता  है | M उस उकसाहट  के परिणामस्वरूप Y  को घोर उपहति कारित  करता है | परिणामतः  Y  की मृत्यु हो जाती है | यहां यदि K  यह जानता था किदुष्प्रेरित घोर उपहति से मृत्यु कारित होना  संभाव्य है,  तो  K  हत्या के लिए  उपबंधित दंड से दण्डनीय  है |