अपराध क्या है, अपराध के तत्व, अपराध और अपकृत्य (दुष्कृति) (व्यवहार – दोष) में अंतर – ( What Is Crime, Its elements & Difference Between Crime And Tort)
अपराध -
अपराध एक ऐसा कार्य या कार्यों का संगठन है, जिससे राज्य की शांति भंग होती है या हिंसा उत्पन्न होती है या साधारण जनजीवन दूषित होता है और जिसके लिए विधि में निर्धारित दंड की व्यवस्था है| यह राज्य, व्यक्ति अथवा दोनों के विरुद्ध हो सकता है |
अपराध एक ऐसा निषिद्ध कार्य है , जो विधि द्वारा दण्डनीय है , क्योकि यह लोकहित के लिए हानिकारक है।
दूसरे शब्दों में, अपराध विधि द्वारा निषिद्ध भी है और समाज की नैतिक मान्यताओं के विरूद्व भी है।
जैसे – 1 ) हत्या , लूट, चोरी , तथा छल इत्यादि विधि द्वारा निषिद्ध कार्य है।
2 ) दूषित खाद्य पदार्थ बेचना , बच्चों और औरतो के साथ छेड़छाड तथा गुमराह करने वाले विज्ञापन इत्यादि लोकहित के लिए हानिकारक है।
यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि एक ही कार्य किसी देश में crime उद्घोषित है , जबकि दूसरे देश में नहीं। जैसे – जारता , सती -प्रथा , बहुविवाह इत्यादि भारतीय दण्ड संहिता , 1860 के अंतर्गत तो crime है, लेकिन यूरोप के कुछ भू – भागों में इन्हे crime नहीं माना जाता।
कुछ शताब्दी पूर्व सती होना भारत में दण्डनीय नहीं माना जाता था , पुण्य का कार्य माना जाता था , परन्तु वर्तमान में यह भारतीय दण्ड संहिता , 1860 के तहत दंडनीय माना जाता है।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत बहु विवाह हिंदुओं के लिए निषिद्ध है लेकिन मुसलमानों के लिए यह लागू नहीं होता | अतः कोई भी कार्य या कृत्य तब तक अपराध की श्रेणी में नहीं आता जब तक वह विधि द्वारा ना निषिद्ध हो |
कुछ प्रचलित परिभाषाएं (Definitions) -
बेंथम के अनुसार, “अपराध वह है जिन्हें विधानांग ने अच्छे या बुरे कारणों से निषिद्ध कर दिया है |”
ब्लैक स्टन के अनुसार, “ निषिद्ध करने वाली सार्वजनिक विधि के अतिक्रमण के रूप में किया गया कार्य या लोप अपराध कहलाता है | “
आस्टिन के अनुसार, “एक अपकार (wrong) जिसमें पैरवी क्षतिग्रस्त पक्ष या उसके प्रतिनिधियों के स्वविवेक पर की जाती है व्यवहारिक अपकृत्य (civil wrong) है, एक अपकार जिसकी पैरवी शासन या उसके अधीनस्थ व्यक्तियों द्वारा की जाती है अपराध है|”
केनी के अनुसार, “ अपराध ऐसे दोष हैं, जिनमें अनुशास्ति (sanction) दंडात्मक (punishable) होती है, जो किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा क्षम्य नहीं है तथा यदि वह क्षम्य है तो केवल राज्य द्वारा |”
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 40 के अनुसार, “अपराध शब्द इस संहिता द्वारा दंडनीय की गई किसी बात का स्रोतक है |”
गांगुला मोहन रेड्डी बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश ए आई आर 2010 के मामले में आत्महत्या को अपराध नहीं माना गया क्योंकि,
1) यह न तो भारतीय दंड संहिता 1860 में परिभाषित है और
2) न दंडनीय है |
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अपराध एक सार्वजनिक अपकार है, जो संपूर्ण समाज से संबंधित है | जबकि अपकृत्य एक वैयक्तिक अपकार है, जो किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित होता है |
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अपराध के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार पीड़ित व्यक्ति को अथवा राज्य को होता है, जबकि अपकृत्य के विरुद्ध कार्यवाही किसी पर- व्यक्ति द्वारा भी की जा सकती है |
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अपराध के लिए दिया जाने वाला दंड शारीरिक अथवा आर्थिक अथवा दोनों हो सकता है, जबकि अपकृत्य में आर्थिक क्षतिपूर्ति का प्रावधान है |
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अपराध में आपराधिक आशय अर्थात दुराशय एक महत्वपूर्ण तत्व है, जबकि अपकृत्य में दुराशय की कोई आवश्यकता नहीं है |
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अपराध एक आपराधिक अपकार (criminal wrong) है, जो अपेक्षाकृत अधिक गंभीर प्रकृति के होते हैं | जबकि अपकृत्य एक सिविल अपकार (civil wrong) है, जो अपेक्षाकृत कम गंभीर होते हैं |
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अपराध दंड न्यायालय द्वारा निर्णीत किए जाते हैं, जबकि अपकृत्य दीवानी न्यायालय द्वारा निर्णीत किए जाते हैं |
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अपराध में अपराधी को दंड देने का उद्देश्य अपराध का निवारण करना है, जबकि अपकृत्य में क्षतिग्रस्त व्यक्ति को क्षतिपूर्ति देना मुख्य उद्देश्य है |
अपराध के तत्व (Elements of Crime)-
इसके निम्नलिखित प्रमुख तत्व है –
- मानव (Person) –
किसी कार्य को अपराध के रूप में विधि द्वारा दंडनीय होने के लिए किसी मानव (Person) द्वारा किया जाना आवश्यक है |
प्राचीन काल में पशुओं या निर्जीव पदार्थों को दंड दिए जाने की अवधारणा थी, परंतु
मध्यकालीन यूरोप में पशुओं के साथ-साथ उनके मालिक को भी दंड दिए जाने के प्रमाण मिलते हैं | जैसे – यदि किसी की बैल ने किसी व्यक्ति को सींग भोंक दी, जिससे उसकी मृत्यु हो गई तो बैल को पत्थरों से मारा जाता था तथा उसके मालिक को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाता था |
परंतु आज crime के अनिवार्य तत्व के रूप में आपराधिक मनः स्थिति की अवधारणा के विकास के साथ-साथ पशु और निर्जीव पदार्थों को दंड देने की अवधारणा समाप्त हो गई |
परंतु आज भी खतरनाक पशुओं को दंड की दृष्टि से नहीं अपितु सुरक्षा की दृष्टि से समाप्त कर दिया जाता है | कुछ परिस्थितियों में आज भी पशु के मालिक को उसके द्वारा की गई क्षति के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है परंतु यह जिम्मेदारी पशु द्वारा की गई क्षति के लिए नहीं बल्कि मालिक द्वारा पशु की उपेक्षा के लिए होती है |
इसी प्रकार एक कृत्रिम व्यक्ति को भी शारीरिक दंड नहीं दिया जा सकता, क्योंकि समुचित दंड का तात्पर्य आर्थिक तथा शारीरिक दोनों से है और शारीरिक दंड कृत्रिम व्यक्तियों को नहीं दिया जा सकता |
अतः अनिवार्यतः crime के लिए एक मानव का होना आवश्यक है |
2.दुराशय (Mens -rea) –
“मात्र कार्य किसी को अपराधी नहीं बनाता, यदि उसका मन अपराधी न हो |” (Actus non facit reum nisi mens sit rea) यह आपराधिक विधि की एक सुविदित उक्ति है | इसका अर्थ है कि कार्य स्वयं किसी को दोषी नहीं बनाता, जब तक कि उसका आशय वैसा ना रहा हो |
इस उक्ति से एक दूसरी उक्ति निकलती है – “ मेरे द्वारा मेरी इच्छा के विरुद्ध किया गया कार्य मेरा नहीं है |” तात्पर्य यह है कि किसी कार्य को दंडनीय होने के लिए इच्छित होना चाहिए या स्वेच्छा से किया गया कार्य आपराधिक आशय से किया गया होना चाहिए |
तात्पर्य है कि किसी कार्य को दंडनीय होने के लिए आपराधिक मनः स्थिति (Mens -rea) का होना आवश्यक है | अर्थात जहां किसी crime को गठित करने के लिए आवश्यक आपराधिक आशय अनुपस्थित होता है, वहां अभियुक्त दंडित नहीं किया जा सकता जब तक कि ऐसा कृत्य विधि द्वारा स्पष्ट रूप से दंडनीय ना हो |
यह मस्तिष्क की वह दोषपूर्ण स्थिति है जिसमें कृत्य का ज्ञान तथा परिणाम का पूर्वानुमान होता है |
उदाहरण के लिए ,
(A) सुमित ने अमित को पकड़ लिया और उसे बंदूक दिखाकर अमन के घर का ताला तोड़ने के लिए बाध्य करता है तो अमित का कार्य आपराधिक मनः स्थिति के अभाव में अपराध नहीं है और अमित को दंडित नहीं किया जाएगा |
(B) ‘A’ ‘B’ की गाय को वध से बचाने के लिए हटा देता है | यहां ‘A’ का प्रयोजन अति उत्तम है किंतु वह क्षम्य नहीं है क्योंकि उसने अवैधानिक रूप से ‘B’ को उसकी गाय से वंचित किया जो वैधानिक नहीं है |
(C) सड़क पर आप टहल रहे हैं | कोई व्यक्ति यकायक आपकी और दौड़ता है तथा लाठी से प्रहार करता है, जिससे आप घायल हो जाते हैं | बाद में जब आप पाते हैं कि वह व्यक्ति विकृत मस्तिष्क का था तो आपकी बदले की भावना स्वतः कम हो जाती है क्योंकि आप जानते हैं कि उसकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं थी तथा उसमें यह सोचने की क्षमता नहीं थी कि यह आप पर प्रहार कर आपको घायल कर रहा है परंतु आपकी भावना उस व्यक्ति के विरुद्ध अलग किस्म की होगी जिसने जानबूझकर आप पर प्रहार किया है | कार्य वही हो सकता है, परिणाम भी वही हो सकता है परंतु फर्क आशय में होता है | अतः क्षति पहुंचाने का आशय (Mens -rea) महत्वपूर्ण होता है |
- अपराधिक कृत्य (Actus – reus) –
किसी crime के लिए एक व्यक्ति तथा उसका दुराशय ही पर्याप्त नहीं है, क्योंकि किसी व्यक्ति के आशय को हम नहीं जान सकते | इसके लिए आपराधिक कृत्य (Actus – reus) का होना अति आवश्यक है अर्थात कृत्य को ध्वनि अपराधिक आशा को किसी स्वेच्छा पूर्ण कार्य या नो के रूप में अवश्य स्पष्ट होना चाहिए |
केनी के अनुसार आपराधिक कृत्य (Actus -reus) मानव आचरण का वह परिणाम है जिसे विधि रोकना चाहता है, किया गया या लोपित (उपेक्षित ) कार्य निश्चयतः किसी विधि द्वारा निषिद्व (forbidden) या आदेशित (commanded) होना चाहिए |
रसेल आपराधिक कृत्य को “मानव आचरण का भौतिक परिणाम बताते हैं |”
किया गया कार्य विधि द्वारा निषिद्ध होना चाहिए | इसका तात्पर्य मात्र यह है कि विधि विचारों एवं आशयों के विपरीत , केवल कृत्य को ही निषिद्ध करता है |
एक कृत्य के अंतर्गत अवैध लोप भी शामिल है | यदि विधि द्वारा किसी व्यक्ति पर कोई दायित्व सौंपा गया है और वह उस दायित्व का निर्वहन नहीं करता, तो इस लोप या उपेक्षा के लिए उसे दंडित किया जाएगा |
उदाहरण के लिए – A अपनी पत्नी और बच्चों को भूख से मरने के लिए छोड़ देता है, तो वह एक crime करता है क्योंकि पत्नी और बच्चों के भरण – पोषण के लिए वह विधितः दायित्वाधीन है |
परंतु यदि नदी में तैरते हुए M डूब जाता है, वही नदी के किनारे खड़े कुछ लोग, जिसमें से कुछ अच्छे तैराक भी हैं, तो भी उन्हें उनके लोप के अभाव में भी अर्थात M के मदद न करने पर भी उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा, क्योंकि नदी के किनारे खड़े लोगों की यहां पर नैतिक दायित्व है न कि विधिक दायित्व |
- मानव की क्षति (Injury to human being) –
भारतीय दंड संहिता की धारा 44 द्वारा परिभाषित ‘क्षति’ शब्द किसी इस प्रकार की हानि की स्रोतक है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या संपत्ति को अवैध रूप से कारित हुई हो |
क्षति किसी दूसरे व्यक्ति या किसी के शरीर अर्थात संपूर्ण समाज को अवैध रूप से पहुंचाई गई होनी चाहिए |
कुछ अपवाद (Exception) -
इस प्रकार हम पाते हैं कि किसी crime के चार आवश्यक तत्व हैं, परंतु इसके कुछ अपवाद भी हैं | जैसे पूर्ण दायित्व के मामले, जहां राज्य कठोर दायित्व अर्थात पूर्ण दायित्व अधिरोपित करता है |
जैसे –
* प्रयत्न (Attempt) –
जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य को कारित कर दे तो उस कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाती तो वह अपराधी माना जाएगा |
जैसे य का वध करने के आशय से क उस पर गोली चलाता है यदि मृत्यु हो जाती तो हत्या का दोषी होता, तो वह धारा 307 के अधीन दंडनीय है |
* दुष्प्रेरण (Abetment) , (धारा 107) –
साधारण भाषा में दुष्प्रेरण का अर्थ है किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए, या यदि वह व्यक्ति कोई कार्य कर रहा है, तो उसे वह कार्य नहीं करने के लिए उकसाना या प्रेरित करना |
जब कोई crime कारित करने में अनेक व्यक्ति हिस्सा लेते हैं तो उसे कारित करने में उनमें से प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग ढंग से और अलग-अलग तरीके से मदद करता है | एक व्यक्ति के प्रोत्साहन पर दूसरा व्यक्ति अपराध कारित करता है | जबकि कुछ अन्य व्यक्ति अपराध कारित होते समय केवल सहायता देने के लिए उपस्थित रहते हैं तथा कुछ व्यक्ति मुख्य अपराधी (जिसने कि crime कारित किया है) को हथियार जुटाने में सहायता कर सकते हैं |
अब उन सभी व्यक्तियों की अपराधिकता की मात्रा के विनिश्चयन के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग (मदद ) की क्या मात्रा और प्रकृति है, इसका निर्धारण किया जाए |
भारतीय दंड संहिता, 1807 की धारा 107 के अनुसार,
वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण (Abetment) करता है, जो-
प्रथम- उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता (Incites) है, अथवा
द्वितीय- उस बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र (Conspiracy) में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण(Following a conspiracy) में, कोई कार्य या अवैध चूक होती है, अथवा
तृतीय- उस बात के किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप (Indirectly) द्वारा साशय (जानबूझ) कर सहायता करता है.|
अतः दुष्प्रेरण तभी एक crime होता है जबकि दुष्प्रेरित कार्य स्वतः एक crime हो तथा भारतीय दंड संहिता 1807 के अंतर्गत या तत्सम में प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अंतर्गत दंडनीय हो |
इसके अतिरिक्त कुछ गंभीर प्रकृति के crime भी होते हैं, जिन्हें राज्य समाज में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से, घटित होने के पूर्व ही अपने नियंत्रण में ले लेता है |
जैसे – * भारतीय दंड संहिता की धारा 399 के अंतर्गत डकैती डालने की तैयारी,
* भारतीय दंड संहिता की धारा 402 के अंतर्गत डकैती डालने के उद्देश्य से इकट्ठा होना |
क्राइम से संबंधित पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नों की सूची निम्नलिखित है –
- शब्द ‘अपराध’ की परिभाषा दीजिए ?
अपराध किसे कहते हैं और यह अपकृत्य से किस प्रकार भिन्न है ?
अपराध किसे कहते हैं ? इसके आवश्यक तत्व क्या है ?
अपराध के आवश्यक तत्व पर प्रकाश डालिए तथा उनके अपवाद का उल्लेख कीजिए जबकि आवश्यक तत्वों के अभाव में भी कोई कार्य अपराध माना जाता है ?
IPC, PCSJ MCQ Question in हिंदी - Objective Question with Answer for IPC -
प्रश्न1- निम्नलिखित में से सही कथन को इंगित कीजिए-
- अपराध अनिवार्यता एक अनैतिक कृत्य है
- अपराध एक अवैधानिक कृत्य है
- अपराध अनिवार्यता एक समाज विरोधी कृत्य है
- अपराध अनिवार्यता एक धर्म विरोधी कृत्य है
उत्तर- अपराध एक अवैधानिक कृत्य है
प्रश्न2- एक अपकार जिसमें पैरवी शासन या उसके अधीनस्थ व्यक्तियों द्वारा की जाती हो । यह कथन है-
- पैटर्न का
- ऑस्टिन का
- कीटन का
- इस्टीफेन का
उत्तर- ऑस्टिन का
प्रश्न3- अपराधिक दायित्व के दो अति महत्वपूर्ण तत्व है-
- आशय एवं कार्य
- आशय एवं क्षति
- क्षति एवं दोष सिद्ध
- तैयारी एवं दंड
उत्तर- आशय एवं कार्य
प्रश्न4-निम्नलिखित में से कौन सा अपूर्ण अपराध है-
- लोक न्यूसेंस
- आपराधिक प्रयत्न
- विधि विरुद्ध जमाव
- बलवा
उत्तर- आपराधिक प्रयत्न
प्रश्न5- निम्नलिखित में से कौन-सा आपराधिक दायित्व का आवश्यक तत्व है?
- चेष्टा या प्रवृत्ति
- हेतु
- दुराशय
- इच्छा
उत्तर- दुराशय
प्रश्न6- निम्न में कौन समान्यतः अपराध का आवश्यक तत्व है ?
- चेष्टा
- आपराधिक कृत्य
- हेतु
- इच्छा
उत्तर- आपराधिक कृत्य
प्रश्न7- अपराधिक मनःस्थिति में शामिल नहीं है-
- हेतु
- आशय
- ज्ञान
- उपेक्षा
उत्तर- हेतु
प्रश्न8- निम्न में से कौन अपराध का आवश्यक तत्व नहीं है?
- दुराशय
- आपराधिक कृत्य
- क्षति
- हेतु
उत्तर- हेतु
प्रश्न9- गलत उत्तर बतलाइए : अपराध के निम्नलिखित आवश्यक तत्व है-
- ऐच्छिक कार्य
- ऐच्छिक या अनैच्छिक कार्य
- दोषपूर्ण आशय
- कार्य मैं लोप भी सम्मिलित होता है
उत्तर- ऐच्छिक या अनैच्छिक कार्य
प्रश्न10- आपराधिक दायित्व के दो अति महत्वपूर्ण तत्व हैं-
- आशय एवं कार्य
- आशय एवं क्षति
- तैयारी एवं दंड
- क्षति एवं दोषसिद्धि
उत्तर- आशय एवं कार्य
प्रश्न11- निम्नलिखित में से कौन अपराध का आवश्यक तत्व नहीं है?
- विधि के अधीन कार्य करने के लिए बाध्य एक मानव
- ऐसे मानव के मन में दुराशय
- ऐसे मानव के कार्य से दूसरे व्यक्ति को कारित क्षति
- दुराशय को पूरा करने के लिए चाहे कार्य व्यक्ति द्वारा किया जाए अथवा नहीं
उत्तर- विधि के अधीन कार्य करने के लिए बाध्य एक मानव
प्रश्न12- कभी-कभी अपराध तब भी घटित होता है भले ही वह अपराधिक मनः स्थिति के साथ कारित न किया गया हो। ऐसे मामले हैं-
- संयुक्त दायित्व के
- प्रतिनिधित्व दायित्व के
- कठोर दायित्व के
- राज्य के दायित्व के
उत्तर- कठोर तत्व के
प्रश्न13- निम्नांकित में से ‘एक लोक सेवक’ नहीं है-
- परिसमापक
- सिविल जज
- न्यायालय की सहायता कर रहा पंचायत सदस्य
- सहकारी समिति का सचिव
उत्तर- सहकारी समिति का सचिव
प्रश्न14- निम्नलिखित में से कौन सा लोक सेवक नहीं है?
- नगर निगम आयुक्त
- संसद सदस्य
- विधायक
- विश्वविद्यालय का परीक्षक
उत्तर- विश्वविद्यालय का परीक्षक
प्रश्न15- दिल्ली में रहने वाला भारत का एक नागरिक इस्लामाबाद में हत्या करता है तथा बाद में मुंबई में पाया जाता है। उसके ऊपर धारा 302 भारतीय दंड संहिता के अधीन मुकदमा चलाकर उसे निम्न स्थान पर दंडित किया जा सकता है-
- इस्लामाबाद में
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय हेग में
- मुंबई में
- उपयुक्त में से कहीं भी
उत्तर- मुंबई में
प्रश्न16- निम्नलिखित में से किस अपराध में दुराशय एक आवश्यक तत्व नहीं है?- हमला
- मानहानि
- आपराधिक षड्यंत्र
- द्धिविवाह
उत्तर- द्धिविवाह
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