आपराधिक षड्यंत्र (Criminal conspiracy) section 120A

आपराधिक षड्यंत्र (Criminal conspiracy) section 120A

criminal conspiracy

पराधिक षड्यंत्र (Criminal conspiracy) section 120A  –

                                                                                         जब दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई अवैध कार्य या कोई ऐसा कार्य जो कि अवैध तो नहीं है, लेकिन अवैध साधनों द्वारा,

 करने या करवाने को सहमत होते हैं,

 तो ऐसी सहमति  (agreement) आपराधिक षड्यंत्र  (criminal conspiracy) कहलाती है |

 परंतु ऐसी सहमति  (agreement) के साथ-साथ कोई कार्य भी  उस षड्यंत्र के अनुसरण में किया जाना आवश्यक है |

 

 

 जैसे (example) –  P, K  और R  आपस में B को M  के घर से जेवरात चोरी करने को राजी करने के लिए निश्चय करते हैं, फिर वे B  को चोरी करने के लिए कहते  हैं |  B  तैयार हो जाता है और चोरी के लिए चल पड़ता है |

 इस मामले में P, K  और R  चोरी के दुष्प्रेरण अपराध हेतु दायित्वाधीन होते section  107 के अंतर्गत, यदि अपराध कारित  हो जाता |

P, K, R  और B  चोरी का अपराध कारित करने का षड्यंत्र करने हेतु  section 120-B  के अंतर्गत दायित्वाधीन होंगे |

 तात्पर्य यह है  कि कोई कार्य जो मात्र अवैध है, यदि एक व्यक्ति द्वारा किया जाता  तो अपराध नहीं है |  जब तक कि वह पूर्ण ना हो |

 लेकिन यदि  उसी अवैध कार्य को करने की सहमति एक से अधिक व्यक्तियों के मध्य हो जाती है तो वह अपराध है भले ही अपराध  पूर्णने ना हो |

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योगेश (सचिन) जगदीश जोशी बनाम महाराष्ट्र राज्य 2008 के वाद में यह अभिनिर्धारित  किया गया कि  षड्यंत्र के अपराध के गठन हेतु दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मस्तिष्क का मिलन (sharing of thought) अनिवार्य है                                                                                                                           

    क्योंकि आपराधिक षड्यंत्र एक मौलिक अपराध  (substantive crime) है |   

आपराधिक षड्यंत्र है या नहीं, इसे प्रत्यक्ष साक्ष्य से सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है |  इसे आसपास की परिस्थितियों और अभियुक्त के आचरण  (conduct) से अनुमान लगाया जा सकता है |

 के.  हासिम  बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु 2005 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि  आपराधिक षड्यंत्र का सार है किसी कार्य को करने का अविधि पूर्ण करार (illegal agreement…….) |

इसके लिए अपराध का कारित होना आवश्यक नहीं है |

 आर. शाजी  बनाम स्टेट ऑफ केरल 2013 के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि आपराधिक षड्यंत्र के अपराध के गठन के लिए  षड्यंत्र के मुख्य उद्देश्य (main  motive) की जानकारी होना मात्र पर्याप्त है | सभी स्तरों की जानकारी होना आवश्यक नहीं है |

 स्टेट बनाम डॉ अनूप कुमार श्रीवास्तव, 2017 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि किसी अवैध कार्य को करने का करार आपराधिक षड्यंत्र के अपराध के गठन का सार है (Agreement to do illegal act is essence of criminal conspiracy) |

आपराधिक  षड्यंत्र के आवश्यक तत्व (Essential elements of criminal conspiracy)  –

1)   दो या दो से अधिक व्यक्ति (two or more than two person)  –

                                                                                                         अपराध के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि किसी व्यक्ति ने स्वयं अपने साथ संयंत्र किया है |

 स्टेट ऑफ तमिलनाडु बनाम नलिनी और अन्य, 1999 के  वाद में यह तर्क दिया गया कि पति- पत्नी को षड्यंत्र के अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता, क्योंकि विधितः  वह एक व्यक्ति माने जाते हैं किंतु

                                                            न्यायालय ने इस तर्क को नहीं माना और यह भी निर्धारित किया कि उन्हें षड्यंत्र के लिए दंडित किया जा सकता है

2)   दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य समझौता (agreement between two or more than two persons to do an illegal act)

                                               षड्यंत्र के अपराध का आवश्यक तत्व विधि का उल्लंघन करने हेतु समझौता है | मात्र दो या दो से अधिक व्यक्ति होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके मध्य कोई अपराध कारित करने को सहमति भी हो तो वे आपराधिक षड्यंत्र के दायी होंगे, भले ही ऐसा अवैध कार्य कारित ना हुआ हो |

 सुशील सूरी बनाम CBI, 2011  के  वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया  कि आपराधिक षड्यंत्र का आवश्यक तत्व अपराध कार्य करने का करार  (agreement) है | सहमति के अनुसरण में कार्यों में सहयोग तथा सहमति स्वयं में ही हिस्सेदारी के निष्कर्ष के लिए अच्छा आधार प्रदान करता है |

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 विद्या लक्ष्मी बनाम स्टेट ऑफ केरल, 2019 के  वाद  में अभियुक्त पत्नी  सहअभियुक्त से प्रेम करती थी, दोनों ने मिलकर पति की हत्या की योजना बनाई |

 

 पत्नी ने मृतक पति से अन्य स्थान पर सुहागरात मनाने को कहा |  सारा यात्रा- कार्यक्रम अभियुक्त पत्नी ने बनाया, तत्पश्चात  सहअभियुक्तगणों ने पति-पत्नी का पीछा किया और पति की हत्या  कारित कर दी |

 

 यह सारी परिस्थितियां (circumstantial evidence) अभियुक्तगणों के आपराधिक षड्यंत्र को स्पष्ट कर रही थी | अतः सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तगणों को धारा 120 -B के अंतर्गत दोषी ठहराया |

 3)  समझौता अवैध कार्य अथवा वैध कार्य अवैध साधनों द्वारा करने का हो (the agreement should be to do an illegal act or legal act by Illegal means)  –

                  मात्र दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य समझौता होना ही पर्याप्त नहीं है |  बल्कि ऐसा समझौता अवैध कार्य को करने के लिए या वैध कार्य को अवैध साधनों द्वारा करने के लिए होना आवश्यक है |

 गुलाम सरवर बनाम बिहार राज्य, 2014  के वाद में उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि  अपराध को करने अथवा कोई गलत कार्य या कोई कार्य गलत तरीके से करने के लिए आपस में एक मत होना आपराधिक षड्यंत्र के लिए पर्याप्त है |

4)  समझौते के अनुसरण में कुछ कार्य किया जाना ( some act must be done in persuance of the agreement )  –

                         दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अवैध कार्य को करने का समझौता होने के साथ ही साथ समझौते के अनुसरण में कुछ कार्य भी किया जाना आवश्यक है |

 यहां यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक षड्यंत्रकारी  षड्यंत्र की प्रत्येक अवस्था में विद्यमान रहे |

 अर्थात यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि कोई व्यक्ति उस षड्यंत्र में एक  पत्रकार था तो वह अन्य  षड्यंत्रकारियो   के कार्यों के लिए भी दायी होगा |

 

संजय दत्त बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2013  के वाद में अभियुक्त को बम विस्फोट का आपराधिक षड्यंत्र कार्य करने हेतु आरोपित किया गया था |  अस्त्र-शस्त्र आरोपी के पास कैसे आए और कैसे उसने सहअपराधी की मदद से उसे नष्ट किया, यह आरोपी ने स्वीकार किया |

 अभियुक्त की स्वीकारोक्ति अभियुक्त की स्वीकारोक्ति से स्वतः ही सिद्ध है |

 नष्ट किए गए शस्त्रों के अंश (parts) मिलने से घटना की कड़ी (chain) बनती है |

 अतः इस वाद में शस्त्र अधिनियम के अधीन  दोषसिद्धि  सही मानी गई |  माना गया कि समझौते के अनुसरण में कुछ कार्य किया गया है |

सजा का प्रावधान - Section 120 B

जा का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता की धारा 120B के तहत यदि कोई व्यक्ति फांसी, उम्रकैद या 2 वर्ष से ज्यादा की कारावास से दंड़नीय अपराध (Punishable crime) करने की साजिश (Conspiracy) में शामिल पाया जाता है। ऐसा करने के कारण उसे मुख्य आरोपी के बराबर सजा मिलती है।

यदि किसी अपराध के मुख्य दोषी को 5 वर्ष की कारावास की सजा मिली है तो उसके साथ जो भी दूसरा व्यक्ति किसी भी प्रकार से उस अपराध की साजिश में शामिल होगा। उसे भी 5 वर्ष की सजा से ही दंडित किया जाएगा। लेकिन यदि आरोपी इन गंभीर अपराधों के अलावा 2 वर्ष से कम किसी अपराध को करने की साजिश का दोषी पाया जाता है तो उसे धारा 120B के तहत 6 महीने तक की सजा  (Punishment for criminal conspiracy) व जुर्माने से दंडित किया जाता है।